कला-संगीत >> मनके : सुर के मनके : सुर केकेशवचन्द्र वर्मा
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इस बड़ी उपलब्धि का अनूठापन यह है कि इन कथाओं की शैली न तो कहीं बोझिल है और न कहीं शास्त्रज्ञान का आत्मप्रदर्शन
हिन्दी लेखक केशवचन्द्र वर्मा ने पिछले पचास वर्षों के अपने सशक्त लेखन में कितने अछूते विषयों और भिन्न विधाओं में आधुनिक बोध और समकालीन परिवेश को समेटा है—यह देखकर आश्चर्य होता है। हिन्दी में हास्य व्यंग्य की विधा को साहित्यिक प्रतिष्ठा दिलाने में अग्रणी केशव जी के व्यंग्य उपन्यास, निबंध, कथा कहानी, कविता संकलन जितना चर्चित हुए—उतना ही उनकी नाट्य कृतियाँ, संस्कृति की नई पहचान कराती रचनाएँ—'उज्जवल नील रस' ओर 'समर्थरति' जैसी गंभीर काव्य कृतियाँ तथा संगीत के सौन्दर्य पक्ष को श्रोताओं और पाठकों के लिए सुलभ कराती पुस्तकें हिन्दी साहित्य की अक्षयनिधि बन चुकी हैं। उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए अनेक सम्मान उन्हें मिले। 'छायानट' जैसी ललित कलाओं की पत्रिका का दस वर्षों तक उ.प्र. संगीत नाटक एकेडेमी के लिए संचालन और सम्पादन किया। केशव जी की संगीत विधयक अन्य कृतियाँ—'कोशिश : संगीत समझने की' तथा 'राग और रस के बहाने' एवं 'शब्द की साख' (रेडियो शिल्प)। —केशव ने कितना शोध किया होगा—पुराणों का अध्ययन, संगीतशास्त्र के दुर्लभ ग्रंथों का पारायण, भारतीय इतिहास के विभिन्न कालों में से संगीतज्ञों के बारे में यदाकदा मिलने वाले संदर्भों का संकलन और कभी लोक प्रचलित किन्तु अब धीरे-धीरे विस्मृत होती जाती किम्बदंतियों का पुनरुद्धार—वास्तव में उनका यह कृतित्व आश्चर्यचकित कर देता है। इतना ही होता तो वह बड़ी उपलब्धि होती—पर इस बड़ी उपलब्धि का अनूठापन यह है कि इन कथाओं की शैली न तो कहीं बोझिल है और न कहीं शास्त्रज्ञान का आत्मप्रदर्शन! रचनाकार सहज, सरल रसमय विषय क अंतर्निहित-रसधारा में स्वयम् सहज भाव से बहता जाता है और अपने पाठक को भी अपने साथ बहा ले जाता है...br>
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